आगरा में हर्षोल्लास से मनाया गया 23वें तीर्थंकर का निर्वाण महोत्सव, आचार्य चैत्य सागर जी का मुनि दीक्षा दिवस भी आयोजित
आगरा, गुरुवार, 31 जुलाई 2025, रात्रि 8:15 बजे
आगरा, उत्तर प्रदेश: धर्मनगरी आगरा आज एक अनुपम श्रद्धा और भक्ति के रंग में रंग गई, जब जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर, श्री 1008 भगवान पार्श्वनाथ का मोक्ष कल्याणक दिवस अत्यंत धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया गया। यह पावन अवसर अतिशय क्षेत्र श्री नेमिनाथ दिगंबर जैन मंदिर नसिया जी, मोतीलाल नेहरू पीर कल्याणी रोड पर, आगरा दिगंबर जैन परिषद के तत्वावधान में आयोजित किया गया। इस भव्य आयोजन का केंद्रीय बिंदु आचार्य श्री 108 चैत्य सागर जी महाराज संसघ का सानिध्य रहा, जिनके 46वें मुनि दीक्षा दिवस का उत्सव भी इसी कड़ी में मनाया गया।
कृत्रिम सम्मेद शिखरजी पर विशेष वंदना और 23 किलो का विशाल लड्डू अर्पण
सुबह से ही नसिया जी मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो गया था। भगवान पार्श्वनाथ के निर्वाण महोत्सव के उपलक्ष्य में, यहां स्थापित कृत्रिम सम्मेद शिखरजी पर विशेष वंदना और पूजन का कार्यक्रम रखा गया। सैकड़ों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं ने भक्तिभाव से पर्वतराज शिखरजी की वंदना की, मानो वे साक्षात उस पवित्र स्थली पर पहुंच गए हों, जहां से 23वें तीर्थंकर ने मोक्ष प्राप्त किया था। इस अवसर पर भगवान पार्श्वनाथ के चरणों में 23 किलो का एक विशाल लड्डू श्रद्धापूर्वक अर्पित किया गया, जो भक्तों की अटूट आस्था और समर्पण का प्रतीक बन गया। यह दृश्य अत्यंत मनोहारी था और इसने उपस्थित सभी लोगों को भक्तिमय कर दिया।
108 कलशों से अभिषेक और पावन पूजन विधि
महोत्सव का एक और प्रमुख आकर्षण श्री 1008 भगवान पार्श्वनाथ का 108 कलशों से भव्य अभिषेक रहा। वैदिक मंत्रोच्चार और जयकारों के बीच, विद्वान पंडितों और श्रावकों ने भगवान की प्रतिमा का कलशों से अभिषेक किया। अभिषेक के उपरांत, दीप प्रज्ज्वलन, पाद प्रक्षालन और शास्त्र भेंट का कार्यक्रम संपन्न हुआ। समूचा वातावरण “जय पार्श्वनाथ” के जयकारों से गुंजायमान था, जिससे मंदिर परिसर में एक अलौकिक ऊर्जा का संचार हो रहा था।
संगीत की धुन पर भजनों से गुंजायमान हुआ मंदिर परिसर
पूजन विधि को और भी अधिक मनोहारी बनाने के लिए, विशाल जैन पार्टी ने संगीतमय भजनों की प्रस्तुति दी। भजनों की मधुर धुनें और उनके भावपूर्ण बोल सीधे हृदय में उतर रहे थे, जिससे उपस्थित सभी श्रद्धालु भक्ति के गहरे सागर में डूब गए। भजनों के साथ-साथ पूजन कार्यक्रम चलता रहा, जिससे भक्तों को आध्यात्मिक शांति और आनंद की अनुभूति हुई।
पुण्यार्जन का सौभाग्य और विशेष लाडू अर्पण
इस पावन अवसर पर अनेक पुण्यार्जक परिवारों को विभिन्न कार्यक्रमों में सहभागिता का सौभाग्य प्राप्त हुआ। शांतिधारा का पुण्यलाभ श्री नेम शरण जैन को प्राप्त हुआ, जिन्होंने जैन धर्म की प्राचीन परंपराओं के अनुसार यह महत्वपूर्ण अनुष्ठान संपन्न किया। आचार्य श्री चैत्य सागर जी महाराज का पाद प्रक्षालन गुरु भक्त परिवार ने किया, जो गुरु के प्रति अपनी असीम श्रद्धा और सम्मान का प्रदर्शन था।
इसके अतिरिक्त, 23 किलो के विशाल लड्डू के बाद, अनेक पुण्यार्जकों ने छोटे-बड़े लड्डू चढ़ाकर अपनी आस्था व्यक्त की:
- द्वितीय लाडू चढ़ाने का सौभाग्य नितिन जैन और मुदित जैन (सिकंदरा) को प्राप्त हुआ।
- तृतीय लाडू जगदीश प्रसाद जैन द्वारा चढ़ाया गया।
- चतुर्थ लाडू राकेश जैन (पर्दे वाले) ने अर्पित किया।
- पांचवां लाडू राजेंद्र जैन, एडवोकेट द्वारा चढ़ाया गया।
- छठवां लाडू दीपक जैन (दूध वाले) ने भक्तिपूर्वक चढ़ाया।
इन सभी पुण्यार्जकों को सकल जैन समाज और आयोजकों द्वारा सम्मानित किया गया, जिन्होंने इस धर्मकार्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
आचार्य श्री चैत्य सागर जी महाराज ने बताया भगवान पार्श्वनाथ का गौरवशाली महत्व
आचार्य श्री 108 चैत्य सागर जी महाराज ने अपने मंगल प्रवचन में भगवान पार्श्वनाथ के ऐतिहासिक और गौरवशाली महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “जैन धर्म में 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का स्थान अत्यंत विशिष्ट है। वर्तमान में वे सबसे लोकप्रिय और श्रद्धालुओं की आस्था के प्रमुख केंद्रबिंदु हैं। उनका जन्म काशी (बनारस) के महाराजा अश्वसेन और महारानी वामादेवी के यहां पौष कृष्ण एकादशी के दिन हुआ था।”
आचार्य श्री ने आगे बताया कि भगवान पार्श्वनाथ को जनमानस में ‘चिंतामणि’, ‘विघ्नहर्ता’ और ‘संकटमोचक’ जैसे नामों से भी जाना जाता है, क्योंकि वे भक्तों की चिंताओं को हरते हैं और उनके संकटों को दूर करते हैं।
उपसर्ग विजेता पार्श्वनाथ: क्षमा और समता का प्रतीक
आचार्य श्री ने भगवान पार्श्वनाथ को ‘उपसर्ग विजेता’ और ‘क्षमा का प्रतीक’ बताते हुए उनके जीवन की गहराइयों को समझाया। उन्होंने कहा, “प्रत्येक व्यक्ति जीवन में उत्कर्ष चाहता है, उन्नति चाहता है, लेकिन वह उपसर्गों, कष्टों और संघर्षों से बचना चाहता है। पर सत्य यह है कि बिना उपसर्गों के, बिना संघर्ष के, बिना चुनौतियों के जीवन में वास्तविक उत्कर्ष संभव नहीं।”
उन्होंने जोर देकर कहा, “जो व्यक्ति जीवन में आने वाले उपसर्गों और चुनौतियों को समता भाव से सहन करता है, वह साधारण मानव से भगवान भी बन जाता है।” इस संदर्भ में आचार्य श्री ने मरुभूति के जीव का अत्यंत प्रेरणादायक उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार मरुभूति के जीव ने अपने दस भव तक अपने सगे भाई कमठ द्वारा दिए गए अनगिनत उपसर्गों को समतापूर्वक सहन किया। उसी मरुभूति का जीव आगे चलकर तीर्थंकर पार्श्वनाथ बन गया। यह कहानी हमें सिखाती है कि कैसे क्षमा, धैर्य और समता किसी भी जीव को सर्वोच्च अवस्था तक पहुंचा सकती है। भगवान पार्श्वनाथ का जीवन इस बात का ज्वलंत प्रमाण है कि कैसे भीषण से भीषण कष्टों को भी धैर्यपूर्वक सहन करके व्यक्ति स्वयं को परमात्मा के रूप में प्रतिष्ठित कर सकता है।
कुशल मंच संचालन और अतिथि सम्मान
पूरे कार्यक्रम का कुशल संचालन मनोज जैन बाकलीवाल ने किया। उन्होंने अपनी ओजस्वी वाणी और व्यवस्थित प्रस्तुति से कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए। इस अवसर पर आगरा से बाहर से आए हुए अनेक अतिथियों का आगरा दिगंबर जैन परिषद द्वारा विशेष सम्मान किया गया, जिससे सौहार्द और एकता का संदेश प्रसारित हुआ।
आगरा दिगंबर जैन परिषद की सक्रिय भागीदारी
इस भव्य आयोजन को सफल बनाने में आगरा दिगंबर जैन परिषद की सक्रिय भूमिका रही। परिषद के अध्यक्ष जगदीश प्रसाद जैन, महामंत्री मनीष जैन (ठेकेदार), अर्थ मंत्री राकेश जैन (पर्दे वाले), और उनके साथ विमलेश जैन (मार्सन्स), जितेंद्र जैन, पूर्व मंत्री सुनील जैन (ठेकेदार), पारस बाबू जैन, राजेंद्र जैन, रमेश जैन (राशन वाले), विमल जैन, सुशील जैन, प्रचार मंत्री आशीष जैन (मोनू), सुनील जैन (काका), सुबोध पाटनी, नरेश पंडिया, अनिल जैन, अनुज जैन (क्रांति), कुमार मंगलम जैन, दीपक जैन, मीडिया प्रभारी आशीष जैन (मोनू) और राहुल जैन सहित सकल जैन समाज के अनेक सदस्य उपस्थित रहे। उनकी उपस्थिति और सक्रिय भागीदारी ने कार्यक्रम की गरिमा को और बढ़ाया। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसने सकल जैन समाज को एक सूत्र में पिरोकर एकता और भाईचारे का संदेश भी दिया।
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