Agra News Today:
आगरा नगर निगम में आउटसोर्सिंग फर्म को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। महापौर हेमलता दिवाकर कुशवाहा और नगर आयुक्त अंकित खंडेलवाल आमने-सामने आ गए हैं। मामला मौजूदा सेवा प्रदाता फर्म अग्रवाल एंड कंपनी के कार्यकाल बढ़ाने का है।
महापौर का कड़ा रुख
महापौर हेमलता दिवाकर कुशवाहा ने नगर आयुक्त से जवाब तलब किया है। उनका कहना है कि बिना अनुमति लिए फर्म का कार्यकाल बढ़ाना नियमों के खिलाफ है। उन्होंने सवाल उठाया कि इस फैसले को न तो कार्यकारिणी समिति के सामने रखा गया और न ही उनसे राय ली गई।
महापौर ने लिखा कि यह फर्म बार-बार वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों में घिरी रही है। ऐसे में इसे सेवा विस्तार देना हैरानी की बात है। उन्होंने इस पूरे मामले से संबंधित पत्रावली और दस्तावेज तुरंत उपलब्ध कराने को कहा है।
नगर आयुक्त का जवाब
उधर, नगर आयुक्त अंकित खंडेलवाल ने महापौर के आरोपों से इनकार किया। उन्होंने कहा कि कंपनी को सेवा विस्तार नियमों के अनुसार दिया गया है। अनुबंध की शर्तों में कहीं यह बाध्यता नहीं है कि फर्म का विस्तार कार्यकारिणी या सदन में लाया जाए।
हालांकि, नगर आयुक्त ने यह भी कहा कि यदि महापौर किसी दस्तावेज की मांग करती हैं तो उन्हें पूरी जानकारी उपलब्ध करा दी जाएगी।
सफाईकर्मी भर्ती पर संकट
इस विवाद का असर नगर निगम की आउटसोर्सिंग भर्तियों पर पड़ सकता है। निगम में लगभग एक हजार सफाईकर्मियों को तैनात किया जाना है। इनकी नियुक्ति सभी 100 वार्डों में होनी है। इसके अलावा कई अन्य पद भी आउटसोर्सिंग के माध्यम से भरे जाने हैं।
अगर सेवा प्रदाता फर्म पर फैसला जल्द नहीं हुआ तो भर्ती प्रक्रिया अटक सकती है। इसका सीधा असर शहर की सफाई व्यवस्था पर पड़ेगा।
फर्म पर पहले भी सवाल
अग्रवाल एंड कंपनी पहले भी विवादों में रही है। निगम के अंदर कई बार इस पर वित्तीय गड़बड़ियों के आरोप लग चुके हैं। महापौर का मानना है कि बार-बार आरोपों से घिरी कंपनी को नया कार्यकाल देना पारदर्शिता पर सवाल उठाता है।
राजनीतिक माहौल गर्माया
महापौर और नगर आयुक्त के बीच का यह टकराव राजनीतिक रूप से भी चर्चा का विषय बन गया है। एक ओर महापौर का कहना है कि नियमों और पारदर्शिता का पालन होना चाहिए। वहीं, नगर आयुक्त मानते हैं कि सेवा विस्तार पूरी तरह अनुबंध और नियमों के तहत हुआ है।
आगे क्या होगा?
फिलहाल, मामला खुलकर सामने आ गया है। महापौर ने जहां कड़ा रुख अपनाया है, वहीं नगर आयुक्त अपने फैसले को जायज ठहरा रहे हैं। अब देखने वाली बात होगी कि नगर निगम की कार्यकारिणी और सदन इस विवाद पर क्या रुख अपनाते हैं।
अगर विवाद लंबा खिंचता है तो सफाईकर्मी और अन्य आउटसोर्सिंग पदों पर नियुक्ति टल सकती है। इसका नुकसान सीधे शहरवासियों को उठाना पड़ेगा।
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