Agra News महानगर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के संगठनात्मक ढांचे को लेकर इन दिनों एक वायरल ऑडियो ने कार्यकर्ताओं के बीच गहन हलचल मचा दी है। यह विवाद बल्केश्वर मंडल की कार्यकारिणी से जुड़ा है, जिसमें यह बड़ा प्रश्न उभरकर सामने आया है कि यदि महानगर अध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष की कोई भूमिका नहीं है, तो संगठन के पदों का बंटवारा आखिर कौन सी ‘अदृश्य शक्ति’ कर रही है? इस मामले ने पार्टी की आंतरिक कार्यप्रणाली और साख पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
ऑडियो में ‘मंडल अध्यक्ष की औकात’ पर सवाल
यह पूरा मामला तब राष्ट्रीय और स्थानीय मीडिया के केंद्र में आया, जब पूर्व पार्षद अमित ग्वाला और वरिष्ठ कार्यकर्ता सुनीत गोयल के बीच हुई बातचीत की ऑडियो क्लिप तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। बातचीत में दोनों के बीच बल्केश्वर मंडल कार्यकारिणी के एक सदस्य (मानव) को लेकर तीखी बहस सुनाई देती है।
ऑडियो में अमित ग्वाला, सुनीत गोयल पर अपनी पोस्ट डिलीट करने के लिए दबाव बनाते हैं, यह कहते हुए कि जिस व्यक्ति को लेकर प्रतिक्रिया दी गई है, वह उनका ‘छोटा भाई’ है और उनकी पोस्ट पर टिप्पणी करना ठीक नहीं।
बातचीत के दौरान अमित ग्वाला का एक बयान संगठनात्मक विवाद का केंद्र बन गया। वह सुनीत गोयल से कहते सुने गए कि:
“तुम्हारी चिंता हम करेंगे ना… हम काहे के लिए बैठे हैं। तुम बताओ कौन-सा पद चाहिए तुम्हें। मंडल अध्यक्ष या महानगर अध्यक्ष की क्या औकात है कुछ देने की।”
इस कथन ने भाजपा संगठन के भीतर की उस दबी हुई असंतुष्टि को सतह पर ला दिया है, जहाँ कार्यकर्ता लंबे समय से महसूस कर रहे थे कि मंडल इकाइयों में नाम तय करने की प्रक्रिया संगठन के घोषित पदाधिकारियों के नियंत्रण से बाहर हो चुकी है।
विवाद की शुरुआत: एक फेसबुक पोस्ट
विवाद की जड़ एक फेसबुक पोस्ट थी, जिस पर सुनीत गोयल ने अपनी प्रतिक्रिया दी थी। पूर्व पार्षद अमित ग्वाला ने इस प्रतिक्रिया पर कड़ी नाराजगी जताते हुए गोयल से पोस्ट हटाने का आदेश दिया और उन्हें अगली सुबह पार्क में मिलने के लिए कहा। ऑडियो में यह धमकी भरा लहजा साफ सुनाई देता है।
अमित ग्वाला के इस खुले दावे ने यह निष्कर्ष निकाला है कि मंडल कार्यकारिणी में सदस्यों के पद तय करने का काम अब संगठन के आधिकारिक पदानुक्रम से हटकर किसी अन्य स्थानीय या अदृश्य प्रभावशाली शक्ति के हाथों में चला गया है।
कार्यकर्ताओं में गहरा असंतोष और गुटबाजी
वायरल ऑडियो के बाद पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं में यह चर्चा तेज हो गई है कि आखिर ऐसे कौन लोग हैं जिनकी सिफारिशों के आधार पर मंडल कार्यकारिणी बन रही है। कई वरिष्ठ और पुराने कार्यकर्ताओं ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यदि निर्णय अध्यक्षों के हाथ में नहीं हैं, तो यह सीधे तौर पर संगठनात्मक परंपराओं और आंतरिक लोकतंत्र का उल्लंघन है।
पार्टी के विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि इस विवाद ने महानगर इकाई में गहरा असंतोष पैदा कर दिया है। कुछ लोग इसे वर्षों से चली आ रही संगठन की अंदरूनी गुटबाजी का परिणाम बता रहे हैं, जहाँ कुछ प्रभावशाली नेताओं के इशारे पर पद बाँटे जाते हैं।
वहीं, जब इस संबंध में पूर्व पार्षद अमित ग्वाला से पूछा गया, तो उन्होंने इन सभी बातों को खारिज करते हुए कहा कि यह केवल उनके विरोधियों की उन्हें फंसाने की एक चाल है।
संगठन की छवि और साख पर असर
राजनीतिक विश्लेषकों का स्पष्ट मत है कि इस ऑडियो विवाद ने भाजपा की पारदर्शी कार्यप्रणाली पर सीधे सवाल खड़े कर दिए हैं। उनका कहना है कि अगर पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी इस मामले में तत्काल और गहन जांच नहीं करते, तो यह उस ‘आंतरिक लोकतंत्र’ के मॉडल को गंभीरता से कमजोर कर सकता है, जिसके लिए भाजपा को जाना जाता है।
फिलहाल, पार्टी के शीर्ष अधिकारी इस पूरे विवाद पर औपचारिक रूप से चुप्पी साधे हुए हैं। यह चुप्पी कार्यकर्ताओं के असंतोष को और बढ़ा रही है। कार्यकर्ताओं के बीच अब भी यही सवाल गूंज रहा है: अगर मंडल और महानगर अध्यक्ष जैसे घोषित पदाधिकारी नाम तय नहीं कर रहे, तो फिर पार्टी के संगठनात्मक पदों को तय कौन कर रहा है और किसके इशारे पर यह राजनीति चल रही है? यह पूरा मामला आगामी चुनावों से पहले पार्टी के लिए बड़ी सिरदर्दी साबित हो सकता है।
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